जब बच्चा मां के गर्भ में आता है तो वह मां के गर्भनाल से जुड़कर सभी प्रकार का पोषण और विकास प्राप्त करता है। लेकिन जब बच्चा बाहर आता है, तो वह वातावरण से घर से परिवार से समाज से जुड़ता जाता है ।उनके साथ इसी के साथ संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है और उसे जीवन पर्यंत करता है। किंतु यह जुड़ाव जिस प्रकार का कार्य किया जाता है वैसा ही होता जाता है। उदाहरण के लिए यदि घर परिवार के लोग उससे बात नहीं करते हैं तो वह भी शांत रहने लगता है।
जिस प्रकार एक मां को अपने बच्चों को देखकर, उसे छूकर, उसे प्यार करके, उसको गोद में लेकर अच्छा महसूस होता है, ठीक उसी प्रकार बच्चा भी अपने मां को देखकर, सुनकर या उसको महसूस करके खुश होता है ।इसलिए मां को अपने बच्चे से जुड़ने का पूरा प्रयास करना चाहिए। एक मां अपने बच्चों स इस प्रकार जो सकती है-
1: मां को अपने बच्चों स से बातचीत करते रहना चाहिए ।यह बात सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है की एक छोटे से शिशु से कैसे बात किया जाए? लेकिन यह सत्य है ,कि यदि बच्चों से बातचीत किया जाता है और यह बातचीत उसकी मां के द्वारा किया जाता है ।उन्हें बहुत अच्छा लगता है । उस बात को जल्दी सीखते भी है । शोध भी यह बताता है की बच्चे अपने मां की आवाज को गर्भ में भी सुन सकते हैं अतः अपने बच्चों से जुड़े रहने के लिए मां को हमेशा बच्चों से कुछ ना कुछ बोलते रहना चाहिए। जैसे- तुम बहुत अच्छे हो ,मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं ,,इत्यादि।
2: मां को बच्चों से बातचीत करने के अलावा उनकी बातों को सुनना भी चाहिए ।बच्चे कुछ ना कुछ आवाज निकालते रहते हैं। उन आवाजों पर मां को कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया अवश्य देना चाहिए। जिससे बच्चे अपने आप को आपसे जोड़ सके। बच्चे “आ” “ई ” “कू” “बू” इत्यादि आवाज निकालते रहते हैं। जो उनके भाषा के विकास की एक कड़ी होती है ।उनके रोने मे भी भाषा का विकास होता है । भाषा के विकास की पहली प्रक्रिया रोना ही होता है। उसके बाद कुछ कुछ वर्ण होते हैं। बच्चे अपनी बातों को मां तक पहुंचाने के लिए बोलते हैं ।उन वर्णों को ही सुनकर प्रतिक्रिया करने से बच्चे अच्छा महसूस करते हैं। बच्चे आपकी आवाज को सुनकर दोहराने का प्रयास करते हैं ।अतः जितना हो सके उनके साथ बातचीत करते रहना चाहिए।
3: बच्चों से बातचीत करने के लिए मां को कभी भी किसी अवसर का इंतजार नहीं करना चाहिए ।और ना ही बच्चों के बोलने का इंतजार करना चाहिए। आपको अपनी तरफ से पूरा प्रयास करना चाहिए जब भी अवसर मिले ।उदाहरण के लिए- बच्चों को कपड़ा बदलते , बच्चों की मालिश करते वक्त, बच्चों को लेट कर खेलते वक्त, बच्चा जब भी आपको देखकर या आपको सुनकर प्रतिक्रिया करता है ,तभी आपको उसके साथ बातचीत शुरू कर देना चाहिए।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कभी भी बच्चों से जोड़ने के लिए या एक मां को अपने बच्चों के साथ जोड़ने के लिए न किसी अवसर का इंतजार करना चाहिए ना ही सोचना चाहिए कि बच्चा मेरी आवाज को क्या सुन पाएगा और ना ही यह देखना चाहिए कि वह पूरी तरीके से सुन भी नहीं पाएगा। अर्थात आप जैसे-जैसे उसके साथ बोलते जाएंगे वैसे-वैसे बच्चे का जुड़ाव आपसे होता जाएगा। और बच्चा उसके साथ ही साथ अपने भाषा का भी विकास करेगा ।अपने सामाजिकता का भी विकास करेगा।